कैंसर का नाम सुनते ही क्या चीनी और मांसाहार को अलविदा कहना जरूरी है? जवाब है: नहीं! असल में, कैंसर के मरीजों के लिए संतुलन, पर्याप्त प्रोटीन और पौष्टिक आहार सबसे ज्यादा मायने रखता है, न कि अटपटे और डरावने डाइट मिथक।
कैंसर का डायग्नोसिस मिलने पर ज्यादातर मरीजों के दिमाग में सबसे पहले आहार को लेकर सवाल आते हैं। इंटरनेट पर फैले तमाम मिथकों के चलते लोग चीनी और मांस छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं। लेकिन असलियत यह है कि कैंसर डाइट उतनी सरल नहीं है जितना लगता है। यह ‘पूरी तरह छोड़ो’ या ‘पूरी तरह खाओ’ का मामला नहीं, बल्कि समझदारी से चुनने का विषय है।
प्रोटीन है आपका सबसे बड़ा सहयोगी
कैंसर और उसके इलाज (कीमोथेरेपी, सर्जरी, रेडिएशन) शरीर पर भारी दबाव डालते हैं। इस दौरान मांसपेशियों का कमजोर होना और वजन गिरना आम बात है। इन्हीं चुनौतियों से लड़ने के लिए प्रोटीन एक जरूरी हथियार बनकर उभरता है। प्रोटीन ऊतकों की मरम्मत करता है, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और मरीजों को इलाज बेहतर तरीके से सहने की ताकत देता है।
भारतीयों में पहले से ही प्रोटीन की कमी देखी जाती है। शाकाहारी लोग दालें, अंकुरित अनाज, दूध, सोया और नट्स से प्रोटीन ले सकते हैं, जबकि अंडे, चिकन और मछली जैसे स्रोत सभी जरूरी अमीनो एसिड्स से भरपूर होते हैं।
एक आम डर यह भी होता है कि मांस खाने से कैंसर बढ़ेगा, लेकिन इस दावे का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। बल्कि, सही तरीके से बना मांस ताकत और रिकवरी में मददगार साबित हो सकता है। जरूरी है तरीका: तला हुआ या प्रोसेस्ड मीट की जगह ग्रिल्ड, बेक्ड या उबला हुआ विकल्प चुनें।
चीनी का रहस्य: कितना ‘नो’ और कितना ‘गो’?
मरीजों के लिए चीनी एक बड़ी चिंता का विषय है। यह सच है कि कैंसर कोशिकाएं ग्लूकोज का इस्तेमाल करती हैं, लेकिन ऐसा शरीर की हर स्वस्थ कोशिका भी करती है। इसलिए कार्बोहाइड्रेट को पूरी तरह छोड़ देना न तो व्यावहारिक है और न ही सेहतमंद।
जरूरी यह नहीं कि चीनी को पूरी तरह बंद कर दिया जाए, बल्कि यह है कि रिफाइंड शुगर (जैसे सॉफ्ट ड्रिंक्स, मिठाइयों, प्रोसेस्ड फूड में मिलने वाली) से दूरी बनाई जाए। इनमें सिर्फ खाली कैलोरीज़ होती हैं, पोषण नहीं। इसकी जगह साबुत अनाज, फल और सब्जियों से मिलने वाले कॉम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट को डाइट में शामिल करें, जो विटामिन, फाइबर और लंबे समय तक एनर्जी देते हैं।

कैंसर मरीजों के लिए डाइट के मुख्य मंत्र
- प्रोटीन को न भूलें: रोजाना दाल, पनीर, टोफू, अंडा, चिकन या मछली जैसे लीन प्रोटीन लें।
- रंग-बिरंगी थाली बनाएं: अलग-अलग तरह के फल और सब्जियां खाएं ताकि विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट मिलते रहें।
- साबुत अनाज को चुनें: मैदा या पॉलिश्ड चावल की जगह ब्राउन राइस, ओट्स और मिलेट्स को तरजीह दें।
- इनसे बनाए दूरी: अल्कोहल, प्रोसेस्ड फूड, तले-भुने स्नैक्स और अतिरिक्त चीनी का सेवन सीमित करें।
- पानी पीते रहें: शरीर को हाइड्रेट रखने के लिए पानी, सूप और ताजे फलों के रस को डाइट में शामिल करें।
याद रखें, संतुलित आहार कैंसर से लड़ने की प्रक्रिया का एक शक्तिशाली हिस्सा हो सकता है। डर के आधार पर खाना छोड़ने के बजाय, समझदारी से पोषण पर ध्यान दें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
1. क्या कैंसर के मरीजों को चीनी पूरी तरह छोड़ देनी चाहिए?
नहीं, पूरी तरह छोड़ना जरूरी नहीं है। शरीर के सामान्य कामकाज के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है। मुख्य लक्ष्य रिफाइंड शुगर (जैसे सोडा, मिठाई, प्रोसेस्ड फूड) से बचना है। फलों और साबुत अनाज से मिलने वाली प्राकृतिक शर्करा विटामिन और फाइबर के साथ आती है, जिसे सीमित मात्रा में लिया जा सकता है।
2. क्या मांस खाने से कैंसर बढ़ता है?
इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि मांस खाने से सीधे तौर पर कैंसर बढ़ता है। दरअसल, इलाज के दौरान शरीर को मजबूत रखने के लिए प्रोटीन की जरूरत होती है, जिसमें मांस एक अच्छा स्रोत हो सकता है। महत्वपूर्ण यह है कि तले हुए या प्रोसेस्ड मीट (जैसे सॉसेज, बेकन) के बजाय ग्रिल्ड, बेक्ड या उबले हुए मांस को प्राथमिकता दें।
3. कैंसर के दौरान वजन और ताकत बनाए रखने के लिए सबसे जरूरी चीज क्या है?
सबसे जरूरी है पर्याप्त प्रोटीन युक्त संतुलित आहार लेना। प्रोटीन मांसपेशियों के नुकसान को रोकने और इम्यूनिटी बढ़ाने में मदद करता है। साथ ही, छोटे-छोटे अंतराल पर पौष्टिक आहार लेते रहना, खूब सारे तरल पदार्थ पीना और डॉक्टर व डाइटीशियन की सलाह का पालन करना ताकत बनाए रखने की कुंजी है।





















